नाटक: विश्व स्वर अटल अमर
(परम देशभक्त, सर्वमान्य नेता, प्रेरक कवि और सांस्कृतिक चेतना के पुरोधा की अमर गाथा)
पहली बार भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेई जी के जीवन चरित्र पर आधारित भव्य संगीतमय नाट्य प्रस्तुति,
निर्माता – ई. ओ.पी. शर्मा
परिकल्पना , लेखन, संगीत व निर्देशन – अमित दीक्षित
10 Sep. 2022, 06:15 PM
स्थल – संगीत नाटक अकादमी, गोमती नगर, लखनऊ
Contribute to the cause of promoting theatre talent of UP.
Your favorite Play “Kansa”, produced by Er. O P Sharma, is back on 10th July, 2022 at Sangeet Natak Academy, Lucknow. (Powered By – Urban Axis Infrastructure and, Presented By – Mohini Foundation)
नाटक “कंसा” का कथासार
२१ जून १९७५, दया प्रकाश सिन्हा जी भांप चुके थे कि देश में इमरजेंसी लगने वाली है,
गुजरात के विद्यार्थियों का नव निर्माण आन्दोलन, दया प्रकाश सिन्हा जी जैसे रंग कर्मी
को भी भीतर तक आंदोलित कर गया था. उनकी लेखनी से निकली रंग रचना “कथा एक कंस की” को लखनऊ के रंग कर्मियों ने इसी दिन पहली बार अपनाया और महाभारत काल के पात्र कंस को रूपक बना कर जनमानस के हृदय में अनेक प्रश्न अंकित कर दिए. हर युग और काल में ये प्रश्न सदैव बने रहें हैं, बस कभी ये प्रश्न चर्चा में आते हैं, कभी चर्चा करने में भी हम भय करते हैं. जैसे –
– क्या सत्ता सिर्फ अविश्वास के सहारे खड़ी होती है?
– क्या पुरुष कठोर ही होने चाहिये?
– परिवार में ही सत्ता हस्तांतरित हो इसके लिए क्या एक कोमल
हृदय व्यक्ति पर असीमित दवाब बनाना ठीक है?
– क्या सत्ता जाने का भय, आपको अपने विश्वस्त सहयोगियों पर
से भी भरोसा उठा देता है?
– क्या भगवान् बनाने की चाहत विनाशकारी नहीं होती?
वीणा में मगन रहने वाला, नदी में कूद कर अपनी बहिन की गुडिया ले आने वाला, रास्ते पर अकेला छोड़ दिए जाने पर क्रंदन करने वाला, पशुओं पर अत्याचार होते न देख पाने वाला, स्त्रियों से प्रेम निभाने वाला एक कोमल हृदय युवक कैसे एक अत्याचारी पर सदैव भयाक्रांत रहने वाला शासक बना और अंत में उसने अपने सभी रिश्तों को खो दिया.
Time : 6.45 P.M.
Date : 1st October, 2019
Venue: Rai Umanath Bali Auditorium, Qaisarbagh, Lucknow
Produced By: Er. Om Prakash Sharma
Directed By: Chandra Bhash Singh
Asst. Director: Juhi Chaudhary
Staged By: Vijay Bela Theater Group
Writer: Chandrashekhar Phansalkar
Co Sponsor By: Mohini Foundation
Call: 9696667587, 7007598605, 7860848563
कथासार
टैक्स फ्री मूल रूप से एक मराठी नाटक है, जो कि चंद्रशेखर फड़सालकर द्वारा लिखा गया है, एवं इसका हिंदी में नाटक परिकल्पना एवं निर्देशन चंद्रभाष सिंह जी द्वारा किया गया गया है l नाटक टैक्स फ्री अंधों के जीवन पर आधारित एक हास्य नाटक है l नाटक में कांताबाई जो की अंधी है, अंधों के मनोरंजन हेतु ब्लाइंड्स क्लब चलाती है, उस क्लब में पहले से मौज़ूद सदस्य नए सदस्यों के साथ गंभीर मजाक करते हैं, वह नया सदस्य घबराकर क्लब से भागने को तैयार हो जाता है , फिर पूर्व सदस्य बताते हैं कि यह सब क्लब को रोमांचित बनाए रखने के लिए किया गया है l नाटक में नेत्रहीन व्यक्ति, हास्य परिहास के साथ जनसंख्या वृद्धि पर भी कटाक्ष करते हैं l अपनी जीवन यात्रा के मध्य में अपनी आंखों की रोशनी खो जाने का दर्द भी दिखाई देता है , एवं मुश्किल हालातों में अपनी ज़िन्दगी को कैसे बेहतर बनाया जाए यह भी दिखाते हैं l नाटक कभी हंसाता है , कभी रुलाता है तो कभी डराता है, सारे रंग है इन नेत्रहीनों की दुनिया मेंl
PLAY TRANSIT WAS HELD ON 30 TH APRIL 2019
AT RAI UMA NATH BALI PECHAGRAH KAISERBAGH
DIRECTED BY – CHANDRA BHASH SINGH
PRODUCED BY – PIXEL FILMS AND VIJAY BELA
PRODUCER- OM PRAKASH SHARMA
पिक्सल फिल्म्स के सौजन्य से दिनांक 18-03-2019 दिन सोमवार को सायं -6:45 बजे राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह केसरबाग में नाटक सुभागी के जरिए संस्था – “विजय बेला एक कदम खुशियों की ओर” के कलाकारों के द्वारा बाल विवाह, जातिप्रथा और विधवा विवाह का मसला मजबूती से उठाया जायेगा।प्रेमचंद की कहानी सुभागी का नाट्य-रूपांतरण एवं निर्देशन चन्द्रभाष सिंह का है। सुभागी का विवाह बचपन में ही हो गया है। एक दिन उसका गौणा होने वाला है। लेकिन, खबर आती है कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। इस खबर से परिवार में सभी दुखी हो जाते हैं। कुछ समय बीतने के साथ सुभागी का भाई रामू उससे चिढ़ने लगता है। रोज-रोज की किच-किच से ऊबकर पंचों को बुलाकर सुभागी का बाप तुलसी महतो बंटवारा करवा लेता है। सुभागी अपने हिस्से में अपने मां-बाप की सेवा करके खुशी-खुशी रहने लगती है। एक दिन उसके पिता और फिर मां बीमारी से दम तोड़ देती हैं। सज्जन सिंह जो तुलसी महतो के मित्र हैं, इस परिवार का ख्याल रखते हैं। उनकी मदद से श्राद्धकर्म सुभागी अकेले करती है। अब सुभागी का एकमात्र उद्देश्य है श्राद्धकर्म में हुआ खर्च सज्जन सिंह को चुकाना।सज्जन सिंह सुभागी के अच्छे चाल चलन को देखकर छोटी जाति की होने के बावजूद उसे अपनी बहू बनाकर कहता है कि बेटी की कोई जाति नही होती।
Pixel films has now come up with a novel idea of celebrating the drama festival on 9th and 10th March, 2019 at Sangeet Natak Academy, Gomtinagar, Lucknow.
The festival highlights will be:
9th March, 7.00 PM – Drama Show “Kissa Maujpur Ka”
10th March, 7.00 PM – Drama Show “Kabir – Ek Dhruv Tara”
कथासार: किस्सा मौजपुर का
नाटक **किस्सा मौजपुर का** में समाज में फैली महिलाओं के प्रति उदासीनता को दर्शाया गया है जबसे विज्ञान के माध्यम से गर्भ की जांच होनी शुरू हो गई है तब से हर कोई लड़का ही चाहता है हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर लें लड़के की चाहत और मानसिकता ज्यों की त्यों बनी हुई है लड़का वंश बढ़ाता है लड़का घर का चिराग होता है लड़कियां पराया धन होती हैं वगैरा-वगैरा अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लड़कियों की संख्या ना के बराबर हो जाए ऐसे में लड़कों के शादी के लिए लड़कियां कहां से आएंगे जब लड़कियां ही नहीं होंगी तो पुरुष का भी जन्म नहीं होगा अतः इस धरा में मानव का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा हमारा छोटा सा स्वार्थ कहीं विकराल समस्या का रूप धारण न कर ले इसी गंभीर समस्या को हास्य व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है नाटक में गांव मौजपुर को दर्शाने के लिए चौपाल अखाड़ा नौटंकी और गायक मंडली का सहारा लिया गया है नाटक की शुरुआत गांव की खुशहाली से प्रारंभ होती है कुछ दिन बाद में क्लीनिक खुल जाता है और फिर शुरू होता है मां के पेट में लिंग की जांच एवं गर्भ में लड़कियां होने पर अबॉर्शन देखते देखते मौजपुर से समस्त नारी विलुप्त हो जाती हैं शुरू होती है समस्या कि अब गांव के लड़कों की विवाह कैसे किया जाए मौजपुर गांव में जो भी लड़का देखने आता है उसे पता चलता है इस गांव में महिलाएं ही नहीं है तो वह उल्टे पांव लौट जाता है मौजपुर के लिए यह समस्या इतनी विकट हो जाती है तब जाकर मालूम पड़ता है कि समाज एवं मानव प्रजाति के लिए महिलाएं कितनी महत्वपूर्ण है
‘हमें इस जमीन में आने तो दो, खुले आसमान में चहचहाना तो दो,
खुशियों से भर देंगे इस जहां के , पहले इस जमीन पर आने तो दो
लेखक: जयवर्धन, निर्देशक: चन्द्रभाष सिंह
कथासार: कबीर – एक ध्रुव तारा
कबीर का जन्म और मृत्यु विवादित है तो उनके कर्म उससे भी ज्यादा विवादित और सामाजिक चेतना को उद्वेलित करनेवाले । उन्होंने रूढ़ियों पाखंडों और आडंबरों की मेखला की एक एक कड़ी को अपने तात्विक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के घन से जम जम प्रहार कर छिन्न भिन्न कर दिया। मानव चेतना जो अधोमुखी सुप्तावस्था में थी उसे ऊर्ध्वमुखी कर जागृत कर दिया परंतु आज भी समाज कई विसंगतियों और कुरीतियों से जूझ रहा है। साम्प्रदायिक उन्माद चरम पर है । स्वार्थपूर्ति येन केन प्रकारेण परम लक्ष्य है। धर्म भाषा जाति आदि अनेक नामों में समाज बंटा हुआ है। ठेकेदार मस्त है पर जनमानस पस्त और त्रस्त है इसीलिए कबीर ध्रुव तारे की भांति आज भी प्रासांगिक हैं। पर इस ध्रुवतारे के आध्यात्मिक प्रकाश पर लोग दृष्टि तो डालें। यही हमारा प्रयास है।
सब कुछ विलक्षण,जन्म एवम नामकरण। शिशु से बालक कबीर बनते ही लोगों की सहायता एवं धर्म संबंधी टेढ़े मेढ़े प्रश्नों से निराश माता पिता।अछूत के मंदिर प्रवेश पर कबीर का पंडो से मतभेद,तर्क। मौलाना, कबीर के क्रिया कलापों से क्रोधित हो क़ाफिर घोषित करता है। गुरु रामानंद से सम्पर्क,गुरु को अपनी गुरूता का भान कराया। गुरु शिष्य और शिष्य गुरु हो गया। पालकों का साथ छूटा।अपनी पत्नी संग गृहस्थी थोड़े में निर्वाह। संतो के भोजन प्रबन्ध हेतु पत्नी से उधार सामान मंगाया बदले में बनिया के घर रात बिताने के लिए पत्नी को स्वयं ले गए। अछूत गरीब परिवार की समस्या के निवारण में औघड़, मौलवी एवं मठाधीश सबने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हर प्रकार से शोषण किया जिसके बाद कबीर की शरण मे वास्तविक शांति मिली। मीर तक़ी एवं हिन्दू मठाधीशों ने सिकन्दर लोदी को कबीर के खिलाफ बरगलाया पर कबीर षड्यंत्रों से बच जाते हैं। लोदी कबीर की शरण मे आ जाते हैं। संत कबीर भ्रमण में नाथपंथियों से सम्पर्क करते हैं। नाथपंथियों के हठयोग को शरीर की साधना से ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग को अस्वीकार तो करते है पर इसका वास्तविक अभिप्राय बताते हैं। सूफियों के प्रेम और कबीर का प्रेम कहीं कहीं एक जैसा है पर कहीं अलग भी है। कबीर का शरीर वृद्ध हो चला। अंतिम समय मे काशी छोड़ मगहर गमन, जहां शरीरान्त के साथ सभी के लिये स्पष्ट सन्देश ” हिन्दू कहूँ तो मैं नहीं, मुसलमान भी नाहिं, पांच तत्व का पूतला, गैबी खेलै माहिं।।” यही दिशा बोध ध्रुवतारे कबीर का।.
नाटक **किस्सा मौजपुर का** में समाज में फैली महिलाओं के प्रति उदासीनता को दर्शाया गया है जबसे विज्ञान के माध्यम से गर्भ की जांच होनी शुरू हो गई है तब से हर कोई लड़का ही चाहता है हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर लें लड़के की चाहत और मानसिकता ज्यों की त्यों बनी हुई है लड़का वंश बढ़ाता है लड़का घर का चिराग होता है लड़कियां पराया धन होती हैं वगैरा-वगैरा अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लड़कियों की संख्या ना के बराबर हो जाए ऐसे में लड़कों के शादी के लिए लड़कियां कहां से आएंगे जब लड़कियां ही नहीं होंगी तो पुरुष का भी जन्म नहीं होगा अतः इस धरा में मानव का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा हमारा छोटा सा स्वार्थ कहीं विकराल समस्या का रूप धारण न कर ले इसी गंभीर समस्या को हास्य व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है नाटक में गांव मौजपुर को दर्शाने के लिए चौपाल अखाड़ा नौटंकी और गायक मंडली का सहारा लिया गया है नाटक की शुरुआत गांव की खुशहाली से प्रारंभ होती है कुछ दिन बाद में क्लीनिक खुल जाता है और फिर शुरू होता है मां के पेट में लिंग की जांच एवं गर्भ में लड़कियां होने पर अबॉर्शन देखते देखते मौजपुर से समस्त नारी विलुप्त हो जाती हैं शुरू होती है समस्या कि अब गांव के लड़कों की विवाह कैसे किया जाए मौजपुर गांव में जो भी लड़का देखने आता है उसे पता चलता है इस गांव में महिलाएं ही नहीं है तो वह उल्टे पांव लौट जाता है मौजपुर के लिए यह समस्या इतनी विकट हो जाती है तब जाकर मालूम पड़ता है कि समाज एवं मानव प्रजाति के लिए महिलाएं कितनी महत्वपूर्ण है
‘हमें इस जमीन में आने तो दो, खुले आसमान में चहचहाना तो दो,
खुशियों से भर देंगे इस जहां के , पहले इस जमीन पर आने तो दो
पिक्सेल फिल्म्स अपने सहयोग़ी संस्थान शांति स्थापना मिशन के साथ मिलकर कानपुर वासियों के लिये ला रहा है अपना सबसे सफल नाटक ‘कंस’. विजय बेला थियटर ग्रुप के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत ये नाटक आपके सामने 20 दिसम्बर, 2018 को लाजपत भवन प्रेक्षागृह, मोतीझील, कानपुर में आयोजित किया जा रहा है. टिकट दर 499 एवम 399 रु. रखी गयी है. www.pixelfilms.org पर रजिस्टर करके आप इसपर KANSA100 कूपन लगाकर 100 रुपये की छूट प्राप्त कर सकते हैं.
इसकी कथावस्तु इस प्रकार है.
वीणा में मगन रहने वाला, नदी में कूद कर अपनी बहिन की गुडिया ले आने वाला, रास्ते पर अकेला छोड़ दिए जाने पर क्रंदन करने वाला, पशुओं पर अत्याचार होते न देख पाने वाला, स्त्रियों से प्रेम निभाने वाला एक कोमल हृदय युवक
‘कंस’ कैसे एक अत्याचारी पर सदैव भयाक्रांत रहने वाला शासक बना और अंत में उसने अपने सभी रिश्तों को खो दिया.
पिता पुत्र का रिश्ता, बहिन भाई का रिश्ता, प्रेमी-प्रेमिका का रिश्ता, पति पत्नी का रिश्ता, एक सम्राट और उसकी टीम का रिश्ता और इन सभी रिश्तों के विविध आयामों को मनोरंजन की नयी परिभाषायों के साथ दर्शाती है और आज के परिवेश से जोड़ती है.
यह नाटक अनेक यक्ष प्रश्नों को पूछता है.
क्या सत्ता सिर्फ अविश्वास के सहारे खड़ी होती है?
क्या पुरुष कठोर ही होने चाहिये?
परिवार में ही सत्ता हस्तांतरित हो इसके लिए क्या एक कोमल हृदय व्यक्ति पर असीमित दवाब बनाना ठीक है?
क्या सत्ता जाने का भय, आपको अपने विश्वस्त सहयोगियों पर से भी भरोसा उठा देता है?
क्या भगवान् बनाने की चाहत विनाशकारी नहीं होती?
नाटक के समाप्ति तक इन प्रश्नों का उत्तर आप स्वयम पा जायेंगे.
पिक्सेल फिल्म्स के प्रोडक्शन और विजय बेला थिएटर टीम के उभरते हुए युवा कलाकारों को आपका भरपूर आशीर्वाद व् प्यार ही हमारी छोटी सी अपेक्षा है. कृपया टिकट लेकर शो देखें और हमारा उत्साह वर्धन करें.
नाटक **किस्सा मौजपुर का** में समाज में फैली महिलाओं के प्रति उदासीनता को दर्शाया गया है जबसे विज्ञान के माध्यम से गर्भ की जांच होनी शुरू हो गई है तब से हर कोई लड़का ही चाहता है हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर लें लड़के की चाहत और मानसिकता ज्यों की त्यों बनी हुई है लड़का वंश बढ़ाता है लड़का घर का चिराग होता है लड़कियां पराया धन होती हैं वगैरा-वगैरा अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लड़कियों की संख्या ना के बराबर हो जाए ऐसे में लड़कों के शादी के लिए लड़कियां कहां से आएंगे जब लड़कियां ही नहीं होंगी तो पुरुष का भी जन्म नहीं होगा अतः इस धरा में मानव का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा हमारा छोटा सा स्वार्थ कहीं विकराल समस्या का रूप धारण न कर ले इसी गंभीर समस्या को हास्य व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है नाटक में गांव मौजपुर को दर्शाने के लिए चौपाल अखाड़ा नौटंकी और गायक मंडली का सहारा लिया गया है नाटक की शुरुआत गांव की खुशहाली से प्रारंभ होती है कुछ दिन बाद में क्लीनिक खुल जाता है और फिर शुरू होता है मां के पेट में लिंग की जांच एवं गर्भ में लड़कियां होने पर अबॉर्शन देखते देखते मौजपुर से समस्त नारी विलुप्त हो जाती हैं शुरू होती है समस्या कि अब गांव के लड़कों की विवाह कैसे किया जाए मौजपुर गांव में जो भी लड़का देखने आता है उसे पता चलता है इस गांव में महिलाएं ही नहीं है तो वह उल्टे पांव लौट जाता है मौजपुर के लिए यह समस्या इतनी विकट हो जाती है तब जाकर मालूम पड़ता है कि समाज एवं मानव प्रजाति के लिए महिलाएं कितनी महत्वपूर्ण है
‘हमें इस जमीन में आने तो दो, खुले आसमान में चहचहाना तो दो,
खुशियों से भर देंगे इस जहां के , पहले इस जमीन पर आने तो दो