नाटक **किस्सा मौजपुर का** में समाज में फैली महिलाओं के प्रति उदासीनता को दर्शाया गया है जबसे विज्ञान के माध्यम से गर्भ की जांच होनी शुरू हो गई है तब से हर कोई लड़का ही चाहता है हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर लें लड़के की चाहत और मानसिकता ज्यों की त्यों बनी हुई है लड़का वंश बढ़ाता है लड़का घर का चिराग होता है लड़कियां पराया धन होती हैं वगैरा-वगैरा अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लड़कियों की संख्या ना के बराबर हो जाए ऐसे में लड़कों के शादी के लिए लड़कियां कहां से आएंगे जब लड़कियां ही नहीं होंगी तो पुरुष का भी जन्म नहीं होगा अतः इस धरा में मानव का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा हमारा छोटा सा स्वार्थ कहीं विकराल समस्या का रूप धारण न कर ले इसी गंभीर समस्या को हास्य व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है नाटक में गांव मौजपुर को दर्शाने के लिए चौपाल अखाड़ा नौटंकी और गायक मंडली का सहारा लिया गया है नाटक की शुरुआत गांव की खुशहाली से प्रारंभ होती है कुछ दिन बाद में क्लीनिक खुल जाता है और फिर शुरू होता है मां के पेट में लिंग की जांच एवं गर्भ में लड़कियां होने पर अबॉर्शन देखते देखते मौजपुर से समस्त नारी विलुप्त हो जाती हैं शुरू होती है समस्या कि अब गांव के लड़कों की विवाह कैसे किया जाए मौजपुर गांव में जो भी लड़का देखने आता है उसे पता चलता है इस गांव में महिलाएं ही नहीं है तो वह उल्टे पांव लौट जाता है मौजपुर के लिए यह समस्या इतनी विकट हो जाती है तब जाकर मालूम पड़ता है कि समाज एवं मानव प्रजाति के लिए महिलाएं कितनी महत्वपूर्ण है
‘हमें इस जमीन में आने तो दो, खुले आसमान में चहचहाना तो दो,
खुशियों से भर देंगे इस जहां के , पहले इस जमीन पर आने तो दो

Past Show News Link