Pixel Celebrates Drama Festival on 9th, 10th March, 2019

Pixel films has now come up with a novel idea of celebrating the drama festival on 9th and 10th March, 2019 at Sangeet Natak Academy, Gomtinagar, Lucknow.

The festival highlights will be:

9th March, 7.00 PM   – Drama Show “Kissa Maujpur Ka”

10th March, 7.00 PM – Drama Show “Kabir – Ek Dhruv Tara”

कथासार: किस्सा मौजपुर का

नाटक **किस्सा मौजपुर का** में समाज में फैली महिलाओं के प्रति उदासीनता को दर्शाया गया है जबसे विज्ञान के माध्यम से गर्भ की जांच होनी शुरू हो गई है तब से हर कोई लड़का ही चाहता है हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर लें लड़के की चाहत और मानसिकता ज्यों की त्यों बनी हुई है लड़का वंश बढ़ाता है लड़का घर का चिराग होता है लड़कियां पराया धन होती हैं वगैरा-वगैरा अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब लड़कियों की संख्या ना के बराबर हो जाए ऐसे में लड़कों के शादी के लिए लड़कियां कहां से आएंगे जब लड़कियां ही नहीं होंगी तो पुरुष का भी जन्म नहीं होगा अतः इस धरा में मानव का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा हमारा छोटा सा स्वार्थ कहीं विकराल समस्या का रूप धारण न कर ले इसी गंभीर समस्या को हास्य व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है नाटक में गांव मौजपुर को दर्शाने के लिए चौपाल अखाड़ा नौटंकी और गायक मंडली का सहारा लिया गया है नाटक की शुरुआत गांव की खुशहाली से प्रारंभ होती है कुछ दिन बाद में क्लीनिक खुल जाता है और फिर शुरू होता है मां के पेट में लिंग की जांच एवं गर्भ में लड़कियां होने पर अबॉर्शन देखते देखते मौजपुर से समस्त नारी विलुप्त हो जाती हैं शुरू होती है समस्या कि अब गांव के लड़कों की विवाह कैसे किया जाए मौजपुर गांव में जो भी लड़का देखने आता है उसे पता चलता है इस गांव में महिलाएं ही नहीं है तो वह उल्टे पांव लौट जाता है मौजपुर के लिए यह समस्या इतनी विकट हो जाती है तब जाकर मालूम पड़ता है कि समाज एवं मानव प्रजाति के लिए महिलाएं कितनी महत्वपूर्ण है
‘हमें इस जमीन में आने तो दो, खुले आसमान में चहचहाना तो दो,
खुशियों से भर देंगे इस जहां के , पहले इस जमीन पर आने तो दो

लेखक: जयवर्धन, निर्देशक: चन्द्रभाष सिंह

कथासार: कबीर – एक ध्रुव तारा

कबीर का जन्म और मृत्यु विवादित है तो उनके कर्म उससे भी ज्यादा विवादित और सामाजिक चेतना को उद्वेलित करनेवाले । उन्होंने रूढ़ियों पाखंडों और आडंबरों  की मेखला की एक एक कड़ी को अपने तात्विक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के घन से जम जम  प्रहार कर छिन्न भिन्न कर दिया। मानव चेतना जो अधोमुखी सुप्तावस्था में थी उसे ऊर्ध्वमुखी कर जागृत कर दिया परंतु आज भी समाज कई विसंगतियों और कुरीतियों से जूझ रहा है। साम्प्रदायिक उन्माद चरम पर है । स्वार्थपूर्ति येन केन प्रकारेण परम लक्ष्य है। धर्म भाषा जाति आदि अनेक नामों में समाज बंटा हुआ है। ठेकेदार मस्त है पर जनमानस पस्त और त्रस्त है इसीलिए कबीर ध्रुव तारे की भांति आज भी प्रासांगिक हैं। पर इस ध्रुवतारे के आध्यात्मिक प्रकाश पर लोग दृष्टि तो डालें। यही हमारा प्रयास है।
सब कुछ विलक्षण,जन्म एवम नामकरण। शिशु से बालक कबीर बनते ही लोगों की सहायता एवं धर्म संबंधी टेढ़े मेढ़े प्रश्नों से निराश माता पिता।अछूत के मंदिर प्रवेश पर कबीर का पंडो से मतभेद,तर्क। मौलाना, कबीर के क्रिया कलापों से क्रोधित हो क़ाफिर घोषित करता है। गुरु रामानंद से सम्पर्क,गुरु को अपनी गुरूता का भान कराया। गुरु शिष्य और शिष्य गुरु हो गया। पालकों का साथ छूटा।अपनी पत्नी संग गृहस्थी थोड़े में निर्वाह। संतो के भोजन प्रबन्ध हेतु पत्नी से उधार सामान मंगाया बदले में बनिया के घर रात बिताने के लिए पत्नी को स्वयं ले गए। अछूत गरीब परिवार की समस्या के निवारण में औघड़, मौलवी एवं मठाधीश     सबने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हर प्रकार से शोषण किया जिसके बाद कबीर की शरण मे वास्तविक शांति मिली। मीर तक़ी एवं हिन्दू मठाधीशों ने सिकन्दर लोदी को कबीर के खिलाफ बरगलाया पर कबीर षड्यंत्रों से बच जाते हैं। लोदी कबीर की शरण मे आ जाते हैं। संत कबीर भ्रमण में नाथपंथियों से सम्पर्क करते हैं। नाथपंथियों के हठयोग को शरीर की साधना से ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग को अस्वीकार तो करते है पर इसका वास्तविक अभिप्राय बताते हैं। सूफियों के प्रेम और कबीर का प्रेम कहीं कहीं एक जैसा है पर कहीं अलग भी है। कबीर का शरीर वृद्ध हो चला। अंतिम समय मे काशी छोड़ मगहर गमन, जहां शरीरान्त के साथ सभी के लिये स्पष्ट सन्देश ” हिन्दू कहूँ तो मैं नहीं, मुसलमान भी नाहिं, पांच तत्व का पूतला, गैबी खेलै माहिं।।” यही दिशा बोध ध्रुवतारे कबीर का।.

लेखक -निर्देशक : आर.के. नाग